Teachers often provide Class 7 Hindi Notes Malhar Chapter 4 पानी रे पानी Summary in Hindi Explanation to simplify complex chapters.
पानी रे पानी Class 7 Summary in Hindi
पानी रे पानी Class 7 Hindi Summary
पानी रे पानी का सारांश – पानी रे पानी Class 7 Summary in Hindi
लेखक अनुपम मिश्र ने प्रस्तुत पाठ के माध्यम से जल संबंधी समस्याओं की तरफ़ सबका ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश की है। इस पाठ में इन्होंने ‘जल-चक्र’ संबंधी किताबी बातों को छोड़कर समस्या के मूल कारणों की पड़ताल की है। ये बताते हैं कि जल – चक्र को समझना आसान है किंतु प्रतिदिन ‘जल के चक्कर’ में इधर-उधर भटकना मुश्किल हो गया है। पानी आता भी है तो बेवक्त। पानी के लिए लड़ाई-झगड़े भी होते हैं।
इससे बचने के लिए घर-घर में मोटर भी लगाए जा रहे हैं। इनके माध्यम से न चाहते हुए भी मजबूरी में पानी खिंचकर दूसरे का हक लूटा जा रहा है। शहरों और महानगरों का हाल तो और बुरा है। यहाँ पानी बिकने लगा है। देश के कई हिस्सों में गरमी में अकाल जैसी स्थिति हो जाती है। दूसरी तरफ़ बरसात में चारों तरफ़ पानी-पानी से ज़िंदगी थम सी जाती है। कभी बेहद कम तो कभी बेहद ज्यादा पानी। ये दोनों ही स्थितियाँ खतरनाक होती हैं।

वस्तुतः अकाल और बाढ़ एक सिक्के के ही दो पहलू हैं । लेखक का मानना है कि इन दोनों को ध्यान से समझने मात्र से समस्याओं से मुक्ति मिल जाएगी। लेखक गुल्लक का उदाहरण देकर समझाता है कि जिस प्रकार से धन खर्च करने से पहले गुल्लक में जमा करना पड़ता है, उसी प्रकार से जल की खपत / खर्च करने से पहले जल का संचय करना ज़रूरी है। हमारी धरती गुल्लक है। छोटे-बड़े तालाब झील के माध्यम से ही इस गुल्लक में पानी जमा होता है।
यह पानी का खज़ाना तब दिखता नहीं है, किंतु बहुत उपयोगी है। बरसात के बाद इसी का हम उपयोग करते हैं। आज हम इस खजाने को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं। ऊपर से तालाबों को बरबाद करके हम जल-चक्र को बाधित कर रहे हैं। इसी की सज़ा हम सब भुगत रहे हैं। जैसे-जैसे हम जल चक्र को बाधित करेंगे, वैसे-वैसे हम पानी के चक्कर में फँसते जाएँगे ।
पानी रे पानी शब्दार्थ
पृष्ठ संख्या-42 : कार्यालय- काम करने का स्थान, दफ़्तर । बेवक्त – कुसमय, किसी भी समय । अकाल- सूखा। थम जाना-रुक जाना।
पृष्ठ संख्या – 43 : भूजल – ज़मीन के नीचे का पानी। भंडार – खज़ाना । दौर-काल, समय।
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पानी रे पानी पाठ लेखक परिचय

अनुपम मिश्र एक प्रखर लेखक, संपादक और जाने-माने पर्यावरणविद होने के साथ-साथ छायाकार भी थे। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उन्होंने अनेक प्रयोगात्मक कार्य किए हैं। आज भी खरे हैं तालाब उनकी सर्वाधिक चर्चित पुस्तक है। ब्रेल लिपि सहित इसका अनुवाद अनेक भाषाओं में हो चुका है। साफ माथे का समाज उनकी एक और महत्वपूर्ण पुस्तक है। वे गाँधी शांति प्रतिष्ठान से प्रकाशित होने वाली पत्रिका गांधी मार्ग के संस्थापक और संपादक भी थे।
Class 7 Hindi Chapter 4 Summary पानी रे पानी
कहाँ से आता है हमारा पानी और फिर कहाँ चला जाता है हमारा पानी? हमने कभी इस बारे में कुछ सोचा है? सोचा तो नहीं होगा शायद, पर इस बारे में पढ़ा जरूर है। भूगोल की किताब पढ़ते समय जल-चक्र जैसी बातें हमें बताई जाती हैं। एक सुंदर-सा चित्र भी होता है, इस पाठ के साथ। सूरज, समुद्र, बादल, हवा, धरती, फिर बरसात की बूँदें और लो फिर बहती हुई नदी और उसके किनारे बसा तुम्हारा, हमारा घर, गाँव या शहर।
चित्र के दूसरे भाग में यही नदी अपने चारों तरफ का पानी लेकर उसी समुद्र में मिलती दिखती है। चित्र में कुछ तीर भी बने रहते हैं। समुद्र से उठी भाप बादल बनकर पानी में बदलती है और फिर 4. इन तीरों के सहारे जल की यात्रा एक तरफ से शुरू होकर समुद्र में वापिस मिल जाती है। जल-चक्र पूरा हो जाता है।
यह तो हुई जल-चक्र की किताबी बात। पर अब तो हम सबके घरों में, स्कूल में, माता-पिता के कार्यालय में, कारखानों और खेतों में पानी का कुछ अजीब सा चक्कर सामने आने लगा है।

नलों में अब पूरे समय पानी नहीं आता। नल खोलो तो उससे पानी के बदले सूँ-सूँ की आवाज आने लगती है। पानी आता भी है तो बेवक्त। कभी देर रात को तो कभी बहुत सबेरे ।
मीठी नींद छोड़कर घर भर की बालटियाँ, बर्तन और घड़े भरते फिरो । पानी को लेकर कभी-कभी, कहीं-कहीं आपस में तू-तू, मैं-मैं भी होने लगती है।
रोज-रोज के इन झगड़े- टंटों से बचने के लिए कई घरों में लोग नलों के पाइप में मोटर लगवा लेते हैं। इससे कई घरों का पानी खिंचकर एक ही घर में आ जाता है। यह तो अपने आस-पास का हक छीनने जैसा काम है, लेकिन मजबूरी मानकर इस काम मोहल्ले में कोई एक घर कर बैठे तो फिर और कई घर यही करने लगते हैं।

पानी की कमी और बढ़ जाती है। शहरों में तो अब कई चीजों की तरह पानी भी बिकने लगा है। यह कमी गाँव-शहरों में ही नहीं बल्कि हमारे प्रदेश की राजधानियों में और दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बैंगलोर जैसे बड़े शहरों में भी लोगों को भयानक कष्ट में डाल देती है। देश के कई हिस्सों में तो अकाल जैसी हालत बन जाती है। यह तो हुई गरी मौसम की बात
लेकिन बरसात के मौसम में क्या होता है ? लो, सब तरफ पानी ही बहने लगता है। हमारे- तुम्हारे घर, स्कूल, सड़कों, रेल की पटरियों पर पानी भर जाता है। देश के कई भाग बाढ़ में डूब जाते हैं। यह बाढ़ न गाँवों को छोड़ती है और न मुंबई जैसे बड़े शहरों को। कुछ दिनों के लिए सब कुछ थम जाता है, सब कुछ बह जाता है।
ये हालात हमें बताते हैं कि पानी का बेहद कम हो जाना और पानी का बेहद ज्यादा हो जाना, यानी अकाल और बाढ़ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यदि हम इन दोनों को ठीक से समझ सकें और सँभाल लें तो इन कई समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है।
चलो, थोड़ी देर के लिए हम पानी के इस चक्कर को भूल जाएँ और याद करें अपनी गुल्लक को। जब भी हमें कोई पैसा देता है, हम खुश होकर, दौड़कर उसे झट से अपनी गुल्लक में डाल देते हैं। एक रुपया, दो रुपया, पाँच रुपया, कभी सिक्के, तो कभी छोटे-बड़े नोट सब इसमें धीरे-धीरे जमा होते जाते हैं। फिर जब कभी हमें कुछ पैसों की जरूरत पड़ती है तो इस गुल्लक की बचत का उपयोग कर लेते हैं।
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हमारी यह धरती भी इसी तरह की खूब बड़ी गुल्लक है। मिट्टी की बनी इस विशाल गुल्लक में प्रकृति वर्षा के मौसम में खूब पानी बरसाती है। तब रुपयों से भी कई गुना कीमती इस वर्षा को हमें इस बड़ी गुल्लक में जमा कर लेना चाहिए। हमारे गाँव में, शहर में जो छोटे-बड़े तालाब, झील आदि हैं, वे धरती की गुल्लक में पानी भरने का काम करते हैं।

इनमें जमा पानी जमीन के नीचे छिपे जल के भंडार में धीरे-धीरे रिसकर, छनकर जा मिलता है। इससे हमारा भूजल भंडार समृद्ध होता जाता है। पानी का यह खजाना हमें दिखता नहीं, लेकिन इसी खजाने से हम बरसात का मौसम बीत जाने के बाद पूरे साल भर तक अपने उपयोग के लिए घर में, खेतों में, पाठशाला में पानी निकाल सकते हैं। लेकिन एक दौर ऐसा भी आया जब हम लोग इस छिपे खजाने का महत्व भूल गए और जमीन के लालच में हमने अपने तालाबों को कचरे से पाटकर, भरकर समतल बना दिया। देखते-ही-देखते इन पर तो कहीं मकान, कहीं बाजार, स्टेडियम और सिनेमा आदि खड़े हो गए।

इस बड़ी गलती की सजा अब हम सबको मिल रही है। गर्मी के दिनों में हमारे नल सूख जाते हैं और बरसात के दिनों में हमारी बस्तियाँ डूबने लगती हैं। इसीलिए यदि हमें अकाल और बाढ़ से बचना है तो अपने आस-पास के जलस्रोतों की, तालाबों की और नदियों आदि की रखवाली अच्छे ढंग से करनी पड़ेगी।

जल-चक्र हम ठीक से समझें, जब बरसात हो तो उसे थाम लें, अपना भूजल भंडार सुरक्षित रखें, अपनी गुल्लक भरते रहें, तभी हमें जरूरत के समय पानी की कोई कमी नहीं आएगी। यदि हमने जल-चक्र का ठीक उपयोग नहीं किया तो हम पानी के चक्कर में फँसते चले जाएँगे।
– अनुपम मिश्र
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