Teachers often provide Class 7 Hindi Notes Malhar Chapter 9 चिड़िया Summary in Hindi Explanation to simplify complex chapters.
चिड़िया कविता Class 7 Summary in Hindi
चिड़िया Class 7 Hindi Summary
चिड़िया कविता का सारांश – चिड़िया Class 7 Summary in Hindi
कविता में कवि ने चिड़िया के माध्यम से एक सुंदर और अहम संदेश दिया है। चिड़िया पीपल की डाल पर बैठकर गाती है और अपनी मीठी बोली में जीवन का संदेश सुनाती है। वह प्रेम, मेल-जोल और स्वतंत्रता की शिक्षा देती है। वन में रहने वाले पक्षी; जैसे- खंजन, कबूतर, कोयल, हंस, तोता आदि सब आपस में मिल-जुलकर रहते हैं, कोई झगड़ा नहीं करते। उनका
घर पूरा आकाश है-वे जहाँ चाहें, वहाँ उड़ते हैं। जहाँ रहते हैं, वहीं अपनी दुनिया बसा लेते हैं। वे मेहनत करते हैं, जितना ज़रूरी हो उतना ही लेते हैं और बाकी दूसरों के लिए छोड़ देते हैं। उनके मन में लालच, स्वार्थ अथवा दूसरों का हक छीनने की भावना नहीं होती ।
कवि के अनुसार, पक्षियों का यह सरल और संतुलित जीवन मनुष्य के लिए एक प्रेरणा है। वे मनुष्य से कहते हैं कि वह भी ऐसा जीवन जीना सीखे; लोभ, द्वेष और बंधनों से मुक्त होकर मानवता को अपनाए । चिड़िया हमें यही सिखाने आती है और गाकर उड़ जाती है, लेकिन उसके गीत में एक गहरी सीख छिपी होती है।
चिड़िया कविता कीव परिचय
आरसी प्रसाद सिंह प्रकृति और जीवन-संघर्षों को अपनी रचनाओं में प्रमुखता से चित्रित करने वाले कवि हैं। वे अपनी रचनाओं में प्रेम, करुणा, त्याग बलिदान, मुक्ति और मिल- न-जुलकर एक सुंदर संसार रचने की कल्पना करते रहे हैं। जैसा कि ‘चिड़िया’ (1911-1996) कविता में भी आपने पढ़ा। उन्होंने चिड़िया के माध्यम से कितनी सुंदर बात कही है—– “चिड़िया बैठी प्रेम-प्रीति की रीति हमें सिखलाती है! वह जग के बंदी मानव को मुक्ति-मंत्र बतलाती है!” कलापी और आरसी उनके चर्चित कविता संग्रह हैं।
चिड़िया कविता हिंदी भावार्थ Pdf Class 7
चिड़िया सप्रसंग व्याख्या
1. पीपल की ऊँची डाली पर,
बैठी चिड़िया गाती है !
तुम्हें ज्ञात क्या अपनी
बोली में संदेश सुनाती है ?
चिड़िया बैठी प्रेम-प्रीति की,
रीति हमें सिखलाती है !
वह जग के बंदी मानव को
मुक्ति-मंत्र बतलाती है !
(पृष्ठ सं०-116)
शब्दार्थ :
ज्ञात- पता / जानकारी ।
प्रेम-प्रीति – प्यार और सौहार्द |
रीति – ढंग / तरीका ।
मुक्ति-मंत्र – आज़ादी का रास्ता, बंधन से छुटकारे की बात।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘चिड़िया’ से ली गई हैं। इसके रचयिता ‘आरसी प्रसाद सिंह’ हैं। इन पंक्तियों में कवि ने एक साधारण दृश्य को गहरे भावों से जोड़कर प्रस्तुत किया है।
व्याख्याः
पीपल के पेड़ की ऊँची डाल पर बैठी चिड़िया मधुर गीत गा रही है । कवि पाठक से प्रश्न करते हैं- क्या तुम चिड़िया के गीत को समझ रहे हो? उसकी बोली में कोई साधारण गीत नहीं, बल्कि एक संदेश छिपा है। चिड़िया के इस गीत में प्रेम और प्रीति (प्यार और सौहार्द ) की शिक्षा छिपी है। वह हमें सिखाती है कि जीवन में प्रेम और शांति का मार्ग ही श्रेष्ठ है। वह एक स्वतंत्र पक्षी है। लेकिन उसमें लोभ या बंधन की कोई भावना नहीं है। अत: वह बंधन में जकड़े हुए मानव को मुक्ति – मंत्र बताती है, यानी वह जीवन की असली स्वतंत्रता और सच्ची शांति का रास्ता दिखाती है। भौतिक बंधनों और इच्छाओं में जकड़े हुए मनुष्य को चिड़िया सिखाती है कि जीवन को सरल, प्रेमपूर्ण और बंधन मुक्त कैसे बनाया जा सकता है।
2. वन में जितने पंछी हैं, खंजन,
कपोत, चातक, कोकिल;
काक, हंस, शुक आदि वास
करते सब आपस में हिलमिल!
सब मिल-जुलकर रहते हैं वे,
सब मिल-जुलकर खाते हैं;
आसमान ही उनका घर है;
जहाँ चाहते, जाते हैं!
(पृष्ठ सं०-116)
शब्दार्थ :
पंछी-पक्षी, चिड़िया ।
खंजन – एक प्रकार का सुंदर, छोटा पक्षी ।
कपोत – कबूतर ।
चातक – पपीहा / सारंग ।
कोकिल – कोयल ।
काक – कौआ।
हंस – एक सफेद, सुंदर और शांत पक्षी ।
शुक – तोता ।
वास करते – रहते हैं, निवास करते हैं।
हिलमिल – प्रेम और सौहार्द से, मिल-जुलकर।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘चिड़िया’ से ली गई हैं। इसके रचयिता ‘ आरसी प्रसाद सिंह’ हैं। इन पंक्तियों में कवि ने पक्षियों की जीवनशैली का सुंदर चित्रण किया है।
व्याख्या:
कवि बताते हैं कि जंगल में अनेक प्रकार के पक्षी रहते हैं; जैसे- खंजन, कबूतर, चातक, कोयल, कौआ, हंस, तोता आदि। वे सभी पक्षी एक साथ, प्रेमपूर्वक रहते हैं। उनके जीवन में कोई झगड़ा या विभाजन नहीं होता। वे मिल-जुलकर रहते हैं और मिल – बाँटकर खाते हैं। उनमें आपसी भाईचारा और सहयोग की भावना होती है। कवि यह भी बताते हैं कि पक्षियों के पास कोई सीमित घर नहीं होता, पूरा आसमान ही उनका घर है। वे पूरी तरह स्वतंत्र होते हैं और जहाँ चाहें, बिना किसी रोक-टोक के उड़कर जा सकते हैं।
3. रहते जहाँ, वहाँ वे अपनी,
दुनिया एक बसाते हैं;
दिन भर करते काम,
रात में पेड़ों पर सो जाते हैं!
उनके मन में लोभ नहीं है,
पाप नहीं परवाह नहीं;
जग का सारा माल हड़पकर,
जाने की भी चाह नहीं।
(पृष्ठ सं०-116-117)
शब्दार्थ :
दुनिया बसाते हैं – अपने जीवन को सुखी और स्थिर बनाते हैं।
लोभ – लालच ।
पाप – बुरे काम, गलत कार्य ।
परवाह – चिंता, फ़िक्र।
माल हड़पकर – सारा धन लूटकर, सब कुछ अपने पास रखकर
चाह नहीं – इच्छा नहीं है ।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘चिड़िया’ से ली गई हैं। इसके रचयिता ‘आरसी प्रसाद सिंह’ हैं। इन पंक्तियों में कवि पक्षियों के सरल, सादा और स्वतंत्र जीवन की सुंदर झलक दिखाते हैं।
व्याख्या:
कवि कहते है कि पक्षी जहाँ रहते हैं, वहाँ अपनी छोटी-सी खुशहाल और स्थायी दुनिया बसा लेते हैं। दिनभर मेहनत करके भोजन की तलाश करते हैं और रात में पेड़ों की डालियों पर सो जाते हैं। उनके मन में न तो कोई लालच होता है, न कोई पाप की भावना और न ही किसी चीज़ की प्राप्ति की चिंता रहती है। वे कभी भी इस संसार का सारा धन या संसाधन अकेले हड़पने की इच्छा नहीं रखते। वे संतोषपूर्ण और सादा जीवन जीते हैं। कवि इस काव्यांश के माध्यम से यह संदेश देते हैं कि मानव को भी पक्षियों से सीख लेकर लालच – मुक्त और संतुलित जीवन जीना चाहिए।
4. जो मिलता है अपने श्रम से,
उतना भर ले लेते हैं;
बच जाता जो, औरों के
हित, उसे छोड़ वे देते है !
सीमा-हीन गगन में उड़ते,
निर्भर विचरण करते हैं;
नहीं कमाई से औरों की,
अपना घर वे भरते हैं !
(पृष्ठ सं०-117)
शब्दार्थ :
श्रम – मेहनत ।
हित – भला, भलाई।
सीमा – हीन गगन – बिना सीमा वाला आकाश ।
निर्भय – बिना डर के ।
विचरण – घूमना, उड़ना ।
कमाई – जो मेहनत से प्राप्त किया गया है।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘चिड़िया’ से ली गई हैं। इसके रचयिता ‘ आरसी प्रसाद सिंह’ हैं। इन पंक्तियों में कवि पक्षियों की संतोषपूर्ण और निःस्वार्थ जीवन शैली की सराहना करते हैं।
व्याख्या:
कवि कहते हैं कि पक्षी केवल उतना ही लेते हैं, जितना वे मेहनत से अर्जित करते हैं, यानी श्रम से प्राप्त भोजन ही खाते हैं। यदि कुछ बच जाता है, तो वे उसे दूसरों के भले के लिए छोड़ देते हैं, अपने पास नहीं रखते। पक्षी सीमाहीन आकाश में स्वतंत्रता से उड़ते हैं और निर्भयता से आकाश में विचरण करते हैं। वे कभी भी दूसरों की कमाई या मेहनत पर निर्भर नहीं रहते । वे कभी भी किसी और की कमाई से अपना घर नहीं भरते, जो उन्हें एक ईमानदार और आदर्श जीवन जीने वाला प्राणी बनाता है । कवि इसके माध्यम से हमें यह सीख देना चाहते हैं कि मानव को भी पक्षियों से प्रेरणा लेकर ईमानदारी, परोपकार और संतोष के साथ जीवन जीना चाहिए।
5. वे कहते हैं, मानव! सीखो
तुम हमसे जीना जग में;
हम स्वच्छंद और क्यों तुमने
डाली है बेड़ी पग में?
तुम देखो हमको, फिर अपनी
सोने की कड़ियाँ तोड़ो;
ओ मानव! तुम मानवता से
द्रोह-भावना को छोड़ो !
पीपल की डाली पर चिड़िया
यही सुनाने आती है
बैठ घड़ी भर, हमें चकित कर,
गा-कर फिर उड़ जाती है।
(पृष्ठ सं०- 117)
शब्दार्थ :
जग – संसार, दुनिया ।
स्वच्छंद – स्वतंत्र, आज़ाद ।
बेड़ी – जंज़ीर ।
पग – पाँव, पैर।
सोने की कड़ियाँ – बंधन, ज़ंजीरें (भौतिक लालच का प्रतीक)।
तोड़ो – मुक्त हो जाओ, आज़ाद हो जाओ ।
द्रोह – भावना – द्वेष, नफ़रत की भावना ।
मानवता – इंसानियत, मानव प्रेम ।
चकित – आश्चर्यचकित, हैरान ।
घड़ी भर – थोड़ी देर के लिए ।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘चिड़िया’ से ली गई हैं। इसके रचयिता ‘आरसी प्रसाद सिंह’ हैं। इन पंक्तियों में चिड़िया मनुष्य से आग्रह करती है कि हमें देखो और हमसे सीखो।
व्याख्या:
कवि कहते हैं कि चिड़िया मनुष्य को बताती है कि हे मनुष्य! हम स्वतंत्र हैं, स्वाभाविक जीवन जीते हैं, प्रेम और सहयोग में विश्वास रखते हैं। चिड़िया मनुष्य से कहती है कि वह अपनी सोने की कड़ियाँ (भौतिक सुखों, लोभ और बंधनों) को तोड़ दे और मानवता के विरुद्ध मन में पनप रही द्वेष, हिंसा और स्वार्थ की भावना का परित्याग कर दे। पीपल की डाली पर बैठकर चिड़िया थोड़ी देर के लिए यह सुंदर, सच्चा और गहरा संदेश देती है और फिर उड़ जाती है। जैसे प्रकृति अपने काम में व्यस्त हो जाती है, वैसे ही चिड़िया भी अपने नैसर्गिक कर्म में लग जाती है। लेकिन उसकी बात हमें सोचने पर मजबूर कर देती है। ये पंक्तियाँ हमें प्रकृति से सीखने और स्वतंत्रता, प्यार एवं मानवता की ओर लौटने की प्रेरणा देती हैं।
Class 7 Hindi Chapter 9 Summary चिड़िया
पीपल की ऊँची डाली पर
बैठी चिड़िया गाती है!
तुम्हें ज्ञ ज्ञात क्या अपनी
बोली में संदेश सुनाती है?
चिड़िया बैठी प्रेम-प्रीति की
रीति हमें सिखलाती है!
वह जग के बंदी मानव को
मुक्ति-मंत्र बतलाती है!
वन में जितने पंछी हैं, खंजन,
कपोत, चातक, कोकिल;
काक, हंस, शुक आदिवास
करते सब आपस में हिलमिल!
सब मिल-जुलकर रहते हैं वे,
सब मिल-जुलकर खाते हैं;
आसमान ही उनका घर है;
जहाँ चाहते, जाते हैं!
रहते जहाँ, वहाँ वे अपनी..
दुनिया एक बसाते हैं;
दिन भर करते काम, रात में
पेड़ों पर सो जाते हैं!
उनके मन में लोभ नहीं है,
पाप नहीं, परवाह नहीं;
जग का सारा माल हड़पकर
जाने की भी चाह नहीं।
जो मिलता है अपने श्रम से,
उतना भर ले लेते हैं;
बच जाता जो, औरों के हित,
उसे छोड़ वे देते हैं!
सीमा-हीन गगन में उड़ते,
निर्भय विचरण करते हैं;
नहीं कमाई से औरों की
अपना घर वे भरते हैं!
वे कहते हैं, मानव! सीखो
तुम हमसे जीना जग में;
हम स्वच्छंद और क्यों तुमने
डाली है बेड़ी पग में?
तुम देखो हमको, फिर अपनी
सोने की कड़ियाँ तोड़ो;
ओ मानव! तुम मानवता से
द्रोह भावना को छोड़ो!
पीपल की डाली पर चिड़िया
यही सुनाने आती है
बैठ घड़ी भर, हमें चकित कर,
गा-कर फिर उड़ जाती है।
– आरसी प्रसाद सिंह
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