Teachers often provide Class 5 Hindi Notes Veena Chapter 2 न्याय की कुर्सी Summary in Hindi Explanation to simplify complex chapters.
न्याय की कुर्सी Class 5 Summary in Hindi
न्याय की कुर्सी Class 5 Hindi Summary
न्याय की कुर्सी का सारांश
‘न्याय की कुर्सी’ एक प्रेरणादायक कहानी है, जो न्याय, ईमानदारी चरित्र एवं विनम्रता की महत्ता को दर्शाती है। उज्जैन के एक मैदान में खेलते हुए लड़कों में से एक लड़का एक टीले पर बैठकर ‘राजा’ बनता है और दोस्तों की काल्पनिक फरियादों का न्यायपूर्वक समाधान करता है। उसकी न्याय – बुद्धि की चर्चा पूरे नगर में फैल जाती है और लोग असली झगड़े सुलझाने के लिए भी उसके पास आने लगते हैं।
जब राजा को इसकी खबर मिलती है, तो वह क्रोधित होकर स्वयं वहाँ जाता है। बच्चों की बुद्धिमानी देखकर राजा चकित रह जाता है। राजा को पता चलता है कि जो लड़का न्याय कर रहा है, वह रोज़ वाला लड़का नहीं है। वह तो बीमार है।
उसके बाद राजा को उस पत्थर के चमत्कारी होने का अंदेशा होता है। वह उस स्थान पर खुदाई करवाता है। वहाँ खुदाई करने पर एक प्राचीन सिंहासन निकलता है, जो राजा विक्रमादित्य का होता है, जिन्हें न्यायप्रिय माना जाता था।
जब भी राजा उस सिंहासन पर बैठने जाता है, तो हर बार एक-एक कर चार मूर्तियाँ उसके नैतिकता और चरित्र की परीक्षा लेती हैं जो कि चोरी, झूठ, हिंसा और शुद्ध विचारों से संबंधित होती हैं। राजा हर बार अपनी गलतियाँ स्वीकार करता है, लेकिन अंतिम बार वह अपने अहंकार में आकर सिंहासन पर बैठने की कोशिश करता है, तब चौथी मूर्ति सिंहासन को लेकर उड़ जाती है।
यह कहानी सिखाती है कि सच्चा न्याय केवल पद, धन या बल से नहीं, बल्कि निष्कलंक चरित्र और विनम्रता से आता है।
न्याय की कुर्सी Class 5 Summary in Hindi
- इस पाठ को पढ़कर विद्यार्थियों को न्यायप्रिय, ईमानदार, सच बोलने तथा निडर बनने की प्रेरणा मिलेगी।
- विद्यार्थी जान पाएँगे कि किसी भी सुनी-सुनाई बात पर विश्वास न करके हमें सच्चाई जानकर ही निर्णय लेना चाहिए।
- प्रस्तुत पाठ छात्रों के संवाद कौशल में सच्चाई और निर्भयता की वृद्धि करेगा ।
- आपसी सहयोग तथा मित्रता की भावना भी उत्पन्न होगी।
- इससे बच्चों की अन्वेषण शक्ति, सृजनात्मक चिंतन और तार्किक चेतना भी बढ़ेगी।
प्रस्तुत पाठ की कहानी उज्जैन की प्राचीन और ऐतिहासिक नगरी की है। उज्जैन नगरी के बाहर एक लंबा-चौड़ा मैदान था। यहाँ-वहाँ टीले थे। एक दिन लड़कों का झुंड वहाँ खेल रहा था। उनमें से एक लड़का एक टीले पर चढ़ गया, किंतु ठोकर खा कर अचानक गिर गया। आसपास देखने पर उसे वहाँ एक चिकने बड़े पत्थर के अलावा और कुछ नहीं दिखाई दिया। उसने उठकर अपने मित्रों को बुलाया। वह शिला पर शान से बैठकर उन्हें कहने लगा कि यह मेरा सिंहासन है और मैं राजा हूँ। तुम सब मेरे दरबारी । तुम अपनी-अपनी फरियाद लेकर आओ। मैं उसका फैसला करूँगा।
लड़कों को यह खेल मज़ेदार लगा। वे एक-एक करके आते, मन से कोई भी फरियाद सुनाते और लड़का जो राजा बना था, वह फैसला करता। उन्हें यह खेल बहुत ही भाया और वे सब इस खेल को रोज़ खेलते। राजा बने लड़के की न्याय – बुद्धि की चर्चा होने लगी। सभी उसके न्याय की प्रशंसा करते और कहते कि उसमें ज़रूर कोई दैवी शक्ति है। एक बार दो किसानों के बीच जमीन का झगड़ा उठ गया। वे राजा के दरबार में न जाकर टीलेवाले लड़के के पास गए।
लड़के ने इतने गंभीर झगड़े का जो निर्णय लिया उसे देखकर सभी दंग रह गए। इसके बाद तो सभी अपनी फरियाद लेकर राजा के दरबार के बजाय लड़के के पास जाते। जब राजा के कानों में यह बात पड़ी तो वह इस बात से क्रोधित हो गया। राजा ने खुद वहाँ आकर उनका खेल देखा तो दंग रह गए। उसने कहा कि सच में यह लड़का बहुत ही बुद्धिमान है। तब मंत्री ने बताया कि रोज फैसला सुनाने वाला लड़का बीमार हो गया है। यह कोई नया लड़का है। इस पर राजा ने कहा कि ज़रूर इस कुर्सी में ही कोई चमत्कार है। जब उसने उस जगह को खुदवाया तो देखा कि वह केवल पत्थर ही नहीं अपितु सुंदर सिंहासन है। इसके चारों पायों पर चार देवदूतों की मूर्तियाँ बनी हुईं थीं। विद्वानों ने बताया कि वह कोई ऐसा-वैसा सिंहासन नहीं था, बल्कि राजा विक्रमादित्य का सिंहासन था जो कि अपने न्याय और विवेक के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। राजा ने वह सिंहासन राजदरबार में रखवा लिया। उसने सोचा कि वह स्वयं इस पर बैठकर फरियाद सुनेगा और फैसला करेगा।
अगले दिन राजा जैसे ही बैठने लगा कि तभी उसे ‘ठहरो!’ ऐसी आवाज़ सुनाई दी किंतु उसे कोई भी नज़र नहीं आया। फिर दोबारा आवाज़ आने पर उसने देखा कि यह सिंहासन के एक पाये की मूर्ति की आवाज़ थी । मूर्ति बोली कि यदि तुमने कभी चोरी नहीं की है तो तुम इस पर बैठने योग्य हो । राजा ने बताया कि उसने दरबारी की जमीन पर कब्जा कर लिया था।
मूर्ति ने उसे बैठने से मना कर दिया और तीन दिन तक प्रायश्चित करने के लिए कहा। उसके बाद मूर्ति आकाश में उड़ गई। चौथे दिन राजा उपवास के बाद फिर उस पर बैठने लगा। दूसरी मूर्ति ने उसे रोका और पूछा कि क्या राजा ने कभी झूठ नहीं बोला है? इस पर राजा ने सोचा कि झूठ तो कई बार बोला था। वे पीछे हट गए और मूर्ति पंख फैलाकर आकाश में उड़ गई। राजा ने फिर उपवास किया। इस बार तीसरी मूर्ति ने पूछा कि क्या राजा ने कभी किसी को चोट नहीं पहुँचाई है ? राजा फिर पीछे हट गए और वह मूर्ति भी उड़ गई। तीन दिन का उपवास कर राजा फिर सिंहासन पर बैठने लगा तो चौथी मूर्ति ने उसे कहा कि अब तक जो लड़के इस पर बैठते थे वे भोले-भाले थे। उनके मन में किसी के प्रति कलुषित भावना नहीं थी। अगर तुम्हें लगता है कि तुम इस योग्य हो तो बैठ सकते हो। राजा ने सोचा कि उससे ज्यादा बलवान, धनवान और बुद्धिमान कौन होगा? यह सोचकर जैसे ही वह सिंहासन की तरफ बढ़ा, उसी समय चौथी मूर्ति पंख फैलाकर सिंहासन को लेकर आकाश में उड़ गई।
इस पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि- न्याय करने वाले को निष्पक्ष होकर बड़ी सूझ-बूझ से निर्णय करना चाहिए।
न्याय की कुर्सी शब्दार्थ –
प्राचीन – पुराना,
ऐतिहासिक – इतिहास से संबंध रखनेवाला,
झुंड – लोगों (बच्चों) का समूह,
शिला – पत्थर / चट्टान,
सिंहासन- राजा या देवता आदि का आसन,
फरियाद – शिकायत / विनती,
काल्पनिक – मनगढ़ंत,
गवाही – गवाह का कथन, साक्ष्य,
आनंद – खुशी, हर्ष,
अपराधी- दोषी,
बयान – वक्तव्य,
अवश्य – ज़रूर,
मामला – बात / घटना/ वजह,
गंभीर – गहरा / महत्वपूर्ण,
क्रोध – गुस्सा,
न्यायकर्ता – न्याय करने वाला या निर्णय करने वाला,
लाव-लश्कर – सेना / फ़ौज,
स्तंभित – सुन्न,
आश्चर्य – अचंभा/ ताज्जुब,
चमत्कार – करामात,
जाँच – छान-बीन / परीक्षा,
सदियों – सौ वर्ष का समय,
विवेक – बुद्धि,
प्रसिद्ध – मशहूर / ख्यात,
आज्ञा – आदेश,
लज्जा – शर्म / हया,
प्रायश्चित – पाप की शुद्धि के लिए किया जाने वाला कार्य,
सकपकाया – किसी बात पर अचानक चौंक जाना,
हिचकिचाना – डगमगाना / दुविधा में पड़ना,
उपवास – व्रत,
कलुष – मैल/ अपवित्रता,
योग्य – लायक / उचित,
दृढ़ – मज़बूत ।
Class 5 Hindi Chapter 2 Summary न्याय की कुर्सी
उज्जैन की प्राचीन और ऐतिहासिक नगरी के बाहर एक लंबा-चौड़ा मैदान था । यहाँ-वहाँ टीले थे। एक दिन लड़कों का एक झुंड वहाँ खेल रहा था। एक लड़का कूदता – भागता एक टीले पर चढ़ गया। अचानक वह ठोकर खाकर गिर पड़ा। उसने इधर-उधर देखा कि किस चीज से ठोकर लगी है। उसको एक बड़े चिकने पत्थर के अलावा और कुछ नहीं दिखा। वह उठकर गया और अपने मित्रों को बुलाकर वह शिला दिखाई। फिर शान से उस पर बैठकर बोला, “यह सिंहासन है मेरा । मैं राजा हूँ और तुम सब मेरे दरबारी। तुम अपनी-अपनी फरियाद लेकर आओ। फिर मैं उनका फैसला करूँगा।”
दूसरे लड़कों को यह खेल पसंद आया। वे एक-एक करके आते और कोई काल्पनिक फरियाद सुनाते। फिर गवाह बुलाए जाते। उनकी गवाही ली जाती। उसके बाद राजा बना हुआ लड़का उनसे सवाल करता और अपना फैसला सुनाता।
इस खेल में उनको इतना आनंद आया कि वे रोज ही यह खेल खेलने लगे। शिकायतें सुनी जातीं, अपराधी पेश किए जाते, बयान लिए जाते, फिर शिला पर बैठा हुआ लड़का अपना फैसला सुनाता।
बात इधर-उधर फैलने लगी। लोग लड़के की न्याय – बुद्धि की चर्चा करने लगे और कहने लगे कि अवश्य ही उस लड़के में कोई दैवी शक्ति है।
एक दिन दो किसानों के बीच जमीन को लेकर झगड़ा उठ खड़ा हुआ। मामला गंभीर था। टीलेवाले लड़के की इतनी चर्चा थी कि वे राजा के दरबार में जाने के बजाय उसी के पास गए और | उसको अपने झगड़े के बारे में बताया। लड़के ने बड़ी गंभीरता से दोनों किसानों के बयान सुने। उसके बाद उसने जो फैसला दिया, उसे सुनकर वे दंग रह गए।
उस दिन के बाद से तो नगर के सभी लोग अपनी फरियाद लेकर यहीं आने लगे। राजा के दरबार में कोई न जाता । और ऐसा कभी नहीं हुआ कि लड़के के फैसले से उन्हें संतोष न हुआ हो।
धीरे-धीरे यह बात राजा के कानों तक पहुँची । उसको बहुत क्रोध आया। उसने गरजकर कहा, “उस छोकरे की यह मजाल कि अपने को मुझसे अच्छा न्यायकर्ता समझे? मैं इन किस्सों में विश्वास नहीं करता। मैं खुद जाकर देखूँगा।”
ऐसा कहकर राजा अपने लाव-लश्कर के साथ उस मैदान में पहुँचा जहाँ लड़के अपना प्रिय खेल खेल रहे थे। बड़ी देर तक राजा उनका खेल देखता रहा। वह स्तंभित रह गया। उसने अपने मंत्री से कहा, “लड़का सचमुच बहुत बुद्धिमान है। इतनी छोटी उम्र में इतनी बुद्धि का होना आश्चर्य की बात है। इसकी न्याय-बुद्धि के आगे तो बड़े-बड़ों को लोहा मानना पड़ेगा।”
उसी समय किसी ने राजा को बताया, “लेकिन महाराज, यह तो रोज वाला लड़का नहीं है। वह बीमार हो गया है, इस कारण कोई नया ही लड़का टीले पर बैठा है।”
“यह तो और भी आश्चर्य की बात है! हो न हो, पत्थर की इस कुर्सी में ही कोई चमत्कार है। मैं इसकी जाँच करूँगा।”
राजा का इशारा पाते ही उस स्थान को खोदकर पत्थर को बाहर निकाला गया। राजा ने देखा कि वह पत्थर नहीं, बहुत ही सुंदर सिंहासन था। उस पर बहुत बारीक और खूबसूरत मूर्तियाँ खुदी हुई थीं। उसके चारों पायों पर चार देवदूतों की मूर्तियाँ बनी हुई थीं। चारों ओर खबर फैल गई। बात ही बात में वहाँ अच्छी खासी भीड़ जमा हो गई। विद्वान पंडितों ने बताया कि वह कोई ऐसा-वैसा सिंहासन नहीं था- सदियों पुराना, राजा विक्रमादित्य का सिंहासन था। राजा विक्रमादित्य अपने न्याय और विवेक के लिए बहुत प्रसिद्ध थे।
राजा ने आज्ञा दी कि सिंहासन को ले जाकर राजदरबार में रख दिया जाए। उसने कहा, “मैं इस पर बैठकर अपनी प्रजा की फरियाद सुनूँगा और उनका फैसला करूँगा।” अगले दिन राजा दरबार में आया और सीधे उस सिंहासन की ओर बढ़ा। वह उस पर बैठने ही वाला था कि किसी की आवाज सुनाई दी, “ठहरो!”
राजा ने रुककर चारों ओर देखा। कोई नजर नहीं आया। वह फिर सिंहासन की ओर बढ़ा। फिर इसी प्रकार आवाज आई, ” ठहरो!” इस बार राजा ने आश्चर्य से देखा कि सिंहासन के एक पाये पर बनी मूर्ति बोल रही है।
मूर्ति ने कहा, “क्या तुम इस सिंहासन पर बैठने योग्य हो? क्या तुम्हें पूरा विश्वास है कि तुमने कभी चोरी नहीं की है?”
राजा ने लज्जा से सर झुका लिया। “यह सच है कि हाल में ही मैंने अपने एक दरबारी की जमीन पर कब्जा कर लिया था क्योंकि मैं उससे नाराज हो गया था।”
“तब तो तुम इसके योग्य नहीं हो”, मूर्ति ने कहा । “तुमको तीन दिन तक प्रायश्चित करना होगा।” यह कहकर मूर्ति अपने पंख फैलाकर आकाश में उड़ गई।
राजा ने तीन दिन तक उपवास किया और प्रार्थना की। चौथे दिन वह फिर दरबार में आया। ज्यों ही सिंहासन पर बैठने लगा, दूसरी मूर्ति ने कहा, “ठहरो! तुम विश्वास के साथ कह सकते हो कि तुमने कभी झूठ नहीं बोला?”
राजा सकपकाया। झूठ तो उसने किसी न किसी मुसीबत से बचने के लिए कई बार बोला था। राजा पीछे हट गया। दूसरी मूर्ति भी पंख फैलाकर आकाश में उड़ गई।
राजा ने तीन दिन तक फिर उपवास और पूजा-पाठ किया। तीसरी बार वह फिर सिंहासन पर बैठने के लिए आगे बढ़ा। हिचकिचाते हुए वह आगे बढ़ा। वह बैठने ही वाला था कि तीसरी मूर्ति ने पूछा, “बैठने के पहले यह बताओ कि क्या तुमने कभी किसी को चोट नहीं पहुँचाई है?”
राजा पीछे हट गया। तीसरी मूर्ति भी अपने पंख फैलाकर उड़ गई। फिर तीन दिन तक उपवास और प्रार्थना करने के बाद राजा सिंहासन की ओर बढ़ा। उसके पैर लड़खड़ा गए। चौथी मूर्ति ने कहा, “ठहरो! जो लड़के इस सिंहासन पर बैठते थे, वे भोले-भाले थे। उनके मन में कलुष नहीं था। अगर तुमको विश्वास है कि तुम इस योग्य हो तो इस सिंहासन पर बैठ सकते हो।”
राजा बड़ी देर तक सोचता रहा। फिर उसने मन ही मन कहा, “अगर एक लड़का इस पर बैठ सकता है तो भला मैं क्यों नहीं बैठ सकता हूँ। मैं राजा हूँ। मुझसे ज्यादा धनवान, बलवान और बुद्धिमान भला और कौन होगा? मैं अवश्य इस सिंहासन पर बैठने योग्य हूँ।”
यह कहकर राजा सिंहासन की ओर दृढ़ कदमों से बढ़ा। लेकिन उसी समय चौथी मूर्ति पंख फैलाकर सिंहासन समेत आकाश में उड़ गई।
– लीलावती भागवत
(राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से प्रकाशित ‘स्वर्ग की सैर तथा अन्य कहानियाँ’ पुस्तक से साभार)
The post न्याय की कुर्सी Class 5 Summary Explanation in Hindi Chapter 2 appeared first on Learn CBSE.
📚 NCsolve - Your Global Education Partner 🌍
Empowering Students with AI-Driven Learning Solutions
Welcome to NCsolve — your trusted educational platform designed to support students worldwide. Whether you're preparing for Class 10, Class 11, or Class 12, NCsolve offers a wide range of learning resources powered by AI Education.
Our platform is committed to providing detailed solutions, effective study techniques, and reliable content to help you achieve academic success. With our AI-driven tools, you can now access personalized study guides, practice tests, and interactive learning experiences from anywhere in the world.
🔎 Why Choose NCsolve?
At NCsolve, we believe in smart learning. Our platform offers:
- ✅ AI-powered solutions for faster and accurate learning.
- ✅ Step-by-step NCERT Solutions for all subjects.
- ✅ Access to Sample Papers and Previous Year Questions.
- ✅ Detailed explanations to strengthen your concepts.
- ✅ Regular updates on exams, syllabus changes, and study tips.
- ✅ Support for students worldwide with multi-language content.
🌐 Explore Our Websites:
🔹 ncsolve.blogspot.com
🔹 ncsolve-global.blogspot.com
🔹 edu-ai.blogspot.com
📲 Connect With Us:
👍 Facebook: NCsolve
📧 Email: ncsolve@yopmail.com
😇 WHAT'S YOUR DOUBT DEAR ☕️
🌎 YOU'RE BEST 🏆