⚙️
Welcome to NCSOLVE — National Curriculum Solver of Learning Volume Environment! Explore Free NCERT Solutions, CBSE Sample Papers, and AI Tools! Empowering Education Worldwide with Advanced AI Technology! Access Cultural Insights, AI-Based Learning, and Free Hidden Books! Prepare for NEET, JEE, UPSC, and Other Competitive Exams with Exclusive Resources! Learn Smarter, Faster, and Better with NCSOLVE Today!

Class 8 Sanskrit Chapter 13 Hindi Translation वर्णोच्चारण-शिक्षा १ Summary - #NCSOLVE 📚

0

Teachers often provide Sanskrit Class 8 Notes and NCERT Class 8 Sanskrit Chapter 13 Hindi Translation Summary Explanation Notes वर्णोच्चारण-शिक्षा १ to simplify complex chapters.

Sanskrit Class 8 Chapter 13 Hindi Translation वर्णोच्चारण-शिक्षा १ Summary

वर्णोच्चारण-शिक्षा १ Meaning in Hindi

Class 8 Sanskrit Chapter 13 Summary Notes वर्णोच्चारण-शिक्षा १

मानव में आवाज़ उत्पन्न होने की प्रक्रिया चार प्रमुख प्रणालियों के माध्यम से संचालित होती हैं। वे प्रणालियाँ इस प्रकार हैं।
1. वाणी उत्पत्ति की प्रणालियाँ

  • नाभि – प्रदेश में स्थित माँसपेशियाँ: (Abdominal Muscles)—पेट व मांसपेशियों द्वारा वायु को बाहरी धरातल की ओर संकुचित करने में सहायता मिलती है।
  • छाती (Lungs & Diaphragm ) – फेफड़े और डायाफ्राम वायु को बाहर निकालने का दबाव उत्पन्न करते हैं।
  • कण्ठ-बिल/स्वरयंत्र (Larynx / Vocal-cords) –कंठ में स्वर-तंत्र होते हैं, जहाँ आवाज़ की मूल ध्वनि उत्पन्न होती है।
  • मुख (Articulatory System) – मुख और नाक से ध्वनि को स्वरूप देकर शब्दों का उच्चारण तैयार होता है।

2. उच्चारण के तीन महत्त्वपूर्ण तत्व
स्थानम्–ध्वनि जहाँ बनती हैं (जैसे तालु, दन्त, कण्ठ) करणम् (यंत्र) – वह अंग जो ध्वनि तैयार करता है (जैसे जिह्वा, ओष्ठ)।
आभ्यन्तर-प्रयत्न-वायु में अपेक्षित क्षमता एवं गति, जो ध्वनि को उत्पन्न करने में लगी होती है।
उदाहरण-
‘त’ और ‘द’ उच्चारण करने में स्थान है तालु या मूर्धा, करण है जिह्वा तथा प्रयत्न है वायु के संकुचन व दिशा ।

3. मुख – नालिका में स्पष्ट उच्चारण-स्थान – मुख की आकृति को दर्शाते हुए तालु, मूर्धा, दन्त, ओष्ठ और नासिका-इन स्थानों पर जिह्वा, ओठ, नाक आदि उपकरण (करणम्) ध्वनि में बदलाव लाते हैं।
मुख, तालु, दाँत, ओठ, नाक आदि का वायु के मार्ग पर नियंत्रण शब्दों को विशेष स्वर रूप देता है।

4. चित्रों का उद्देश्य-

  • वायु उत्पत्ति प्रणाली (नाभि- छाती – कण्ठ- मुख / नाक) का परिचय देना।
  • मुख-नालिका में वर्णों के उच्चारण-स्थान तथा संबंधित अंगों का दृश्य रूप में स्पष्ट प्रतिफलन करना।
  • पाठक को ‘स्थानम्’, ‘करणम्’ तथा ‘आभ्यन्तर- प्रयत्नः ‘ – तीनों का प्रयोग समझना।
  • निष्कर्षतः मानव वाणी एक समन्वित प्रणाली है, जिसमें उदर, मांसपेशियाँ व वायु प्रणाली (पेट – फेफड़े), स्वरतंत्र (कण्ठ), और मुख-नालिका (शब्द रूप देने वाले अंग) सहयोग करते हैं। किसी भी वर्ण के उच्चारण में सबसे महत्त्वपूर्ण तीन तत्व–स्थान, करण और
  • आंतरिक प्रयत्न सक्रिय होते हैं। इस पाठ के चित्र और उदाहरण इन सिद्धांतों को स्पष्ट समझाते हैं।

मूलपाठः, शब्दार्थाः, अन्वयाः, सरलार्थाः, अभ्यासकार्यम्

(क) शब्दानां सम्यक् शुद्धं च उच्चारणं नितान्तं महत्त्वपूर्णम् अस्ति इति वयं पूर्वस्मिन् पाठे दृष्टवन्तः । कस्यचित् शब्दस्य सम्यग्-उच्चारणार्थं, तस्य शब्दस्य प्रत्येक – वर्णस्य शुद्ध निर्दुष्टम् उच्चारणं भवेत्। अतः प्रत्येक- वर्णस्य शुद्धम् उच्चारणं कथं भवतीति अत्र ज्ञास्यामः ।

वर्णानां स्वर-व्यञ्जनादीनां विविध-भेद-उपभेदानां विषये वयं पूर्वासु कक्षासु ज्ञातवन्तः । तत्र आस्ये षट् उच्चारण-स्थानानि अपि वयं दृष्टवन्तः । परन्तु, वर्णानाम् उच्चारणे केवलम् आस्यस्य एव उपयोगः भवति इति-न। वर्णानाम् उच्चारणार्थम् आस्येन सह शरीरस्य इतरेषाम् अपि अङ्गानाम् उपयोगः भवति, यथा- (पृष्ठ 146)

शब्दार्थाः

  • सम्यक् शुद्धम् – पूर्ण रूप से शुद्ध, त्रुटिरहित ।
  • उच्चारणम्-शब्द बोलने की विधि ।
  • नितान्तम् – अत्यन्त, पूरी तरह।
  • महत्त्वपूर्णम्-महत्त्वपूर्ण ।
  • दृष्टवन्तः – देखा, अनुभव किया।
  • प्रत्येक वर्णस्य – प्रत्येक अक्षर का ।
  • स्वर – व्यञ्जनादीनाम् – स्वरों और व्यंजनों का समूह।
  • उपभेदानाम् – उप- – वर्गों का विभाजन ।
  • उच्चारण-स्थानम्-ध्वनि उत्पन्न करने का स्थान ।
  • अपि – भी।
  • केवलम् – मात्र, केवल ।
  • उपयोगः – उपयोग ।
  • यथा – जैसे ।

सरलार्था:- शब्दों का शुद्ध व स्पष्ट उच्चारण अत्यन्त आवश्यक है, यह हमने पूर्व के पाठों में देखा है। किसी शब्द के सम्यक् उच्चारण के लिए, उसकी हर एक वर्ण को शुद्ध रूप से, उसके उचित उच्चारण-स्थान और साधनों के साथ बोलना चाहिए। अतः प्रत्येक वर्ण का शुद्ध उच्चारण किस प्रकार होता है आप यहाँ जानेंगे।

वर्णों, स्वरों और व्यंजनों आदि के विविध भेदों और उपभेदों के विषय में हम पूर्व कक्षाओं में जान चुके हैं। वहाँ हमने मुख में वर्णों के छह उच्चारण-स्थानों को भी देखा है। परन्तु, वर्णों का उच्चारण केवल मुख के आश्रय से ही होता है – ऐसा नहीं है, वर्णों के उच्चारण के लिए मुख के साथ शरीर के अन्य अंगों का भी उपयोग होता है। जैसे-

Class 8 Sanskrit Chapter 13 Hindi Translation वर्णोच्चारण-शिक्षा १ Summary

(ख)
1. नाभि-प्रदेश:
(Navel-region – Abdominal Muscles)
मांसपेशी -बल-तन्त्रम् – (Muscular-pressure System)

2. उर:
(Chest – Lungs & Diaphragm)
वायु-बल-तन्त्रम् – (Air-pressure System)

3. कण्ठ- बिलः
(Voice-box – Larynx/Vocal-cords)
ध्वनि-तन्त्रम् – (Phonatory & Resonatory System)

4. आस्यम्
(Head – Mouth & Nose)
उच्चारण-तन्त्रम् – (Articulatory System)

आस्यस्य अभ्यन्तरे-
(क) मुखम् – (Mouth/Oral cavity),
(ख) नासिका – (Nose/Nasal cavity)-च उभौ भवतः ।

यदा वयं कञ्चित् शब्दं वर्णं वा उच्चारयितुम् इच्छामः, तदा-

  1. सर्वप्रथमं नाभि-प्रदेशे स्थिताः मांसपेश्यः उरः नोदयन्ति ।
  2. उरः पुनः श्वासकोश – स्थितं वायुम् ऊर्ध्वं निःसारयति ।
  3. सः वायुः ऊर्ध्वं सरन् कण्ठ – बिलं प्राप्नोति ।
  4. ततः, सः वायुः पुनः ऊर्ध्वं सरन् आस्यं प्रविशति ।

आस्यस्य अभ्यन्तरं प्रविश्य मुखे, नासिकायां च स्थितेषु षट्सु उच्चारण-स्थानेषु वर्णानुसारं स्वकीयं स्थानं प्राप्य, सः वायुः तस्मिन् स्थाने वर्णरूपेण प्रकटीभवति। (पृष्ठ 146)

शब्दार्था:-

  • नाभि-प्रदेशः – नाभि – भाग ।
  • उरः – छाती ।
  • कण्ठ-बिलः–स्वरतंत्री।
  • आस्यम् – मस्तक ।
  • मुखम् – मुँह ।
  • नासिका – नाक / नासिका स्थान।
  • यदा – जब ।
  • वयम् – हम सब ।
  • कञ्चित्-कोई।
  • मांसपेश्यः – स्नायु ।
  • श्वासकोशः – फेफड़े।

सरलार्था:-

  1. नाभि-भाग – मांसपेशी – बल प्रणाली
  2. छाती – वायुदाब प्रणाली
  3. स्वरतंत्री – ध्वन्यात्मक प्रणाली
  4. मस्तक – उच्चारण प्रणाली

मस्तक के अंदर मुँह और नाक / नासिका दोनों होते हैं। जब हम कोई शब्द या वर्ण उच्चारित करना चाहते हैं, तब-

  1. सर्वप्रथम नाभि- प्रदेश में स्थित मांसपेशियाँ छाती में वायु को ऊपर उठाती है।
  2. छाती पुनः श्वासकोश में स्थित वायु को ऊपर उठाती है।
  3. वह वायु ऊपर की ओर सरकती हुई स्वरतंत्री तक पहुँचती है।
  4. तब, वह वायु फिर ऊपर की ओर सरकती हुई मुख में प्रवेश करती है।

मस्तिष्क के अंदर प्रवेश करके मुख और नासिका में स्थित छह उच्चारण-स्थानों में, वर्णों के अनुसार अपने-अपने स्थान को प्राप्त करके, वह वायु उसी स्थान पर वर्ण के रूप में प्रकट होती है।

(ग) मनुष्येषु वाग्-उत्पत्ति-प्रक्रिया
(Voice Production Mechanism in Humans)
Class 8 Sanskrit Chapter 13 Hindi Translation वर्णोच्चारण-शिक्षा १ Summary 1
(पृष्ठ 147)

शब्दार्था :

  • मनुष्येषु उत्पत्ति – उत्पन्न होना।
  • आस्यम् – सिर, मस्तक ।
  • कण्ठ-बिलः – स्वरतंत्री।
  • उरः – छाती ।
  • नाभि- प्रदेश : – नाभि – भाग ।
  • नासिका – नाक।
  • मुखम् – मुँह, मुख।
  • जिह्वा – जीभ ।
  • गल – बिलः – अधो – ग्रसनी।
  • कण्ठ-बिलः – स्वरतंत्री ।
  • श्वास-नालः – श्वाँस -नली।
  • श्वासकोश: – फेफड़े।

सरलार्था:-
मनुष्यों में वाणी/ बोली उत्पन्न होने की प्रक्रिया-
1. नाभि – भाग (मांसपेशी – दाब – प्रणाली)

  • नाभि प्रदेश की स्नायु
  • नाभि ।

2. छाती (वायु – दाब – प्रणाली)

  • श्वाँस नली
  • फेफड़े
  • पार्श्व अस्थिपञ्जर
  • डायाफ्राम

3. स्वरतंत्री (ध्वनि तन्त्र)

  • अधो- ग्रसनी
  • स्वरतंत्री

4. सिर/मस्तक (उच्चारण तन्त्र)

  • नाक / नासिका
  • मुँह
  • जीभ

Class 8 Sanskrit Chapter 13 Hindi Translation वर्णोच्चारण-शिक्षा १ Summary

(घ) आस्यस्य अभ्यन्तरे स्थितेषु षट्सु स्थानेषु सः वायुः वर्णरूपेण कथं प्रकटीभवति ?’ इति अग्रे ज्ञास्यामः ।
आस्यस्य अभ्यन्तरे वर्णानाम् उत्पत्त्यर्थं वस्तुत: त्रीणि तत्त्वानि आवश्यकानि भवन्ति-
(क) प्रथमम् – स्थानम्
(ख) द्वितीयम् – करणम्
(ग) तृतीयम् – आभ्यन्तर- प्रयत्नः
अस्मिन् पाठे ‘स्थानस्य’, ‘करणस्य’ च चर्चां कुर्मः ‘आभ्यन्तर-प्रयत्नस्य’ विषये अग्रिमायां कक्षायां ज्ञास्यामः । (पृष्ठ 147)

शब्दार्थाः

  • आस्यस्य – मस्तक के।
  • अभ्यन्तरे – भीतर में।
  • स्थानेषु – स्थानों में।
  • वर्णरूपेण – वर्ण के रूप में।
  • कथं- क्यों ।
  • प्रकटीभवति – प्रकट होता है।
  • अग्रे – आगे ।
  • ज्ञास्यामः – जानेंगे |
  • उत्पत्त्यर्थम्-उत्पत्ति के लिए।

सरलार्थाः-मस्तिष्क के अंदर में स्थित छह स्थानों में वह वायु वर्ण के रूप में क्यों प्रकट होती है? यह आगे जानेंगे। मस्तिष्क के अंदर वर्णों की उत्पत्ति के लिए वास्तव में तीन तत्व आवश्यक होते हैं-
(क) पहला – स्थान
(ख) दूसरा – करण (यंत्र)
(ग) तीसरा – आभ्यन्तर प्रयत्न

इस पाठ में हम ‘स्थान की’ और ‘करण (यंत्र) की ‘ चर्चा करते हैं।
‘आभ्यन्तर प्रयत्न’ के विषय में हम अगली कक्षा में जानेंगे।

(ङ) स्थानम्
वर्णस्य उच्चारण-समये, श्वासकोशतः ऊर्ध्वं सरन् वायुः, कण्ठ-बिल – माध्यमेन आस्यस्य अभ्यन्तरं प्रविश्य, तत्र मुखे नासिकायां वा यस्मिन् स्थले वर्णरूपेण प्रकटीभवति, तत्–’स्थानम्’ इति उच्यते।
Class 8 Sanskrit Chapter 13 Hindi Translation वर्णोच्चारण-शिक्षा १ Summary 2
आस्ये वर्णानां षट् उच्चारण-स्थानानि
Class 8 Sanskrit Chapter 13 Hindi Translation वर्णोच्चारण-शिक्षा १ Summary 3
(पृष्ठ 148)

शब्दार्थाः

  • वर्णस्य–वर्ण के ।
  • उच्चारण-समये-उच्चारण-समय में।
  • श्वासकोशतः – फेफड़े से।
  • ऊर्ध्वम् – ऊपर की ओर ।
  • सरन् – सरकंती हुई।
  • कण्ठ – बिल – माध्यमेन – स्वरतंत्री से होती हुई ।
  • आस्यस्य – मस्तिष्क के ।
  • अभ्यन्तरम् – अंदर।
  • प्रविश्य – प्रवेश करके ।
  • यस्मिन् – जिस ।

सरलार्था:-
(क) स्थान
वर्ण के उच्चारण के समय में, वायु फेफड़े से ऊपर की ओर सरकती हुई, स्वरतंत्री से होती हुई मस्तिष्क के अंदर प्रवेश कर, वहाँ मुख में या नासिका में जिस स्थान पर वर्ण के रूप में प्रकट होती है, उसे ‘स्थान’ कहा जाता है। मस्तिष्क में – हम छह स्थान को देखते हैं जैसे- मस्तिष्क-नाक/नासिका में यह छठा स्थान है। मुख में – कण्ठ, तालु, मूर्धा, दन्त और ओष्ठ पाँच स्थान हैं।

मस्तिष्क में वर्णों के छह उच्चारण-स्थान
१. कण्ठ
२. तालु
३. मूर्धा
४. दन्त
५. ओष्ठ
६. नासिका

(च)
Class 8 Sanskrit Chapter 13 Hindi Translation वर्णोच्चारण-शिक्षा १ Summary 4
स्थानस्य सम्यक् कार्य-निदर्शनार्थं ‘मुरली’ समुचितम् उदाहरणम् अस्ति। मुरल्या: ‘अङ्गुलिच्छिद्राणि’ आस्यस्य ‘स्थानानि’ इव व्यवहरन्ति । मुरली – नलिकया आगच्छन् वायुः अङ्गुलिच्छिद्रेषु एव विविध ध्वनि-रूपेण प्रकटीभवति ।
Class 8 Sanskrit Chapter 13 Hindi Translation वर्णोच्चारण-शिक्षा १ Summary 5
(पृष्ठ 149)

शब्दार्था:

  • स्थानस्य – स्थान के |
  • सम्यक् – उचित, उपयुक्त।
  • निदर्शनार्थम् – देखने के लिए।
  • मुरली – बाँसुरी |
  • अङ्गुलिच्छिद्राणि – अंगुलियों के छिद्र ।
  • इव – के समान ।
  • नलिकया – नली से ।
  • आगच्छन्- आती हुई ।
  • एव – ही ।

सरलार्था :- स्थान के उचित कार्य देखने हेतु ‘मुरली’ उपयुक्त उदाहरण है। मुरली के अंगुलियों के छिद्रों को मस्तिष्क के ‘स्थानों’ के समान व्यवहार करते हैं। मुरली नली से आती हुई वायु अंगुली छिद्रों में ही विभिन्न ध्वनि के रूप में प्रकट होती हैं।

Class 8 Sanskrit Chapter 13 Hindi Translation वर्णोच्चारण-शिक्षा १ Summary

(छ) करणम्
वर्णस्य उच्चारण-समये, आस्यस्य यः भागः स्थानं स्पृशति, स्थानस्य समीपं वा याति सः भागः- -‘करणम्’ इति कथ्यते ।
यथा निदर्शने-मुरलीं वादयन्त्यः ‘अङ्गुलयः’–आस्यस्य करणानि इव व्यवहरन्ति । अङ्गुलयः यदा अङ्गुलिच्छिद्राणि विविधरूपेण स्पृशन्ति, तेषां समीपं वा यान्ति; तदा तेषु अङ्गुलिच्छिद्रेषु विविध-ध्वनयः प्रकटीभवन्ति ।
तालु मूर्धा, दन्तः च एतेषु त्रिषु स्थानेषु ‘जिह्वा’ करणं भवति ।

तालव्यानां, मूर्धन्यानां दन्त्यानां च वर्णानाम् उच्चारणार्थं → जिह्वा यथाक्रमं तालु मूर्धानं, दन्तं च स्थानं स्पृशति, समीपं वा याति, येन यथाक्रमं
तत्-तद्-वर्णानाम् उत्पत्तिः भवति । अतः, एतेषां त्रिविधानां वर्णानाम् उच्चारणार्थं→ जिह्वा – ‘करणम्’, अर्थात् ‘उपकरणं’
भवति- (पृष्ठ 150)

शब्दार्था:

  • स्पृशति – छूता है ।
  • समीपम् – नज़दीक ।
  • वा – अथवा।
  • याति – जाता है ।
  • कथ्यते – कहलाता है।
  • वादयन्त्यः – बजाते हुए।
  • यथाक्रमम्-क्रम के अनुसार ।
  • येन – जिससे ।
  • एतेषाम् – इनके / इन ।

सरलार्था :- (ख) करण ( मस्तक में उच्चारण का ‘उपकरण’ या यंत्र)

वर्ण के उच्चारण के समय में, मस्तिष्क का जो भाग स्थान को स्पर्श करता है या स्थान के समीप जाता है, वह भाग–’करण’ कहलाता है।

उदाहरण के लिए – मुरली बजाते हुए ‘अंगुलियों का’ मस्तिष्क के करण (यंत्र) के समान व्यवहार होता है। अंगुलियाँ जब अङ्गुली छिद्रों को विभिन्न प्रकार से छूती हैं। या उनके समीप जाती हैं; तब उन अंगुली छिद्रों में विभिन्न ध्वनियाँ प्रकट होती हैं।

तालु मूर्धा और दन्त → ये तीनों स्थानों में → जिह्वा ‘करण’ या ‘यंत्र’ होती है।

तालव्य, मूर्धन्य और दन्त वर्णों के उच्चारण के लिए जिह्वा-क्रमानुसार तालु, मूर्धा और दन्त स्थान को स्पर्श करती है या समीप जाती है, जिससे क्रमानुसार उस-उस वर्णों की उत्पत्ति होती है। अतः, इन तीन प्रकार के वर्णों के उच्चारण के लिए → जिह्वा-‘करण’ अर्थात् ‘उपकरण’ होती है-

(ज)
Class 8 Sanskrit Chapter 13 Hindi Translation वर्णोच्चारण-शिक्षा १ Summary 6
(पृष्ठ 150)
शब्दार्थाः

  • तालव्याः वर्णाः – तालु-स्थान में उत्पन्न वर्ण (जिन वर्णों का उच्चारण तालु से होता है)।
  • मूर्धन्याः वर्णाः – मूर्धा – स्थान में उत्पन्न वर्ण (जिन वर्णों का उच्चारण मूर्धा से होता है ) ।
  • दन्त्याः वर्णाः – : – दन्त स्थान में उत्पन्न वर्ण (जिन वर्णों का उच्चारण दन्त से होता है ) ।

सरलार्था :- [ तालु-स्थान में उत्पन्न वर्ण ]

  • तालु – स्थान
  • जिह्वा – करण (यंत्र)
  • [जीभ का मध्य भाग ]

मूर्धा – स्थान में उत्पन्न वर्ण
मूर्धा – स्थान
जिह्वा – करण (यंत्र या उपकरण )
[जीभ के भाग से थोड़ा पहले का भाग]

दन्त – स्थान में उत्पन्न वर्ण

  • दन्त – स्थान
  • जिह्वा – करण (यंत्र)
  • [जीभ का अग्र भाग]

Class 8 Sanskrit Chapter 13 Hindi Translation वर्णोच्चारण-शिक्षा १ Summary

(झ)
Class 8 Sanskrit Chapter 13 Hindi Translation वर्णोच्चारण-शिक्षा १ Summary 7
कण्ठः, ओष्ठः, नासिका च – एतेषु त्रिषु स्थानेषु → ‘स्व-स्थानम्’ एव करणं भवति ।
कण्ठ्यानाम्, ओष्ठ्यानां नासिक्यानां च वर्णानाम् उच्चारणे जिह्वा प्रायः निष्क्रिया भवति । एतेषां वर्णानाम् उच्चारणार्थं तत्-तत्- स्थानस्य एव कश्चित् पर-भागः तत्-तत्-स्थानस्य पूर्व-भागं स्पृशति, समीपं वा याति । अतः,
एतेषां त्रिविधानां वर्णानाम् उच्चारणार्थं → स्व – स्थानं – ‘करणम्’, अर्थात् ‘उपकरणं’ भवति- (पृष्ठ 151)

शब्दार्थाः

  • अङ्गुलयः – अंगुलियाँ ।
  • स्व – अपना ।
  • निष्क्रिया – अक्रियाशील ।
  • भवति – होता है।

सरलार्था :- अंगुलियाँ → करण (यंत्र) के समान ।

कण्ठ, ओष्ठ और नासिका-ये तीनों स्थानों में → ‘स्व-स्थान’ ही करण होता है।
कण्ठ, ओष्ठ और नासिक्य वर्णों के उच्चारण में जिह्वा अक्रियाशील हाती है। इन वर्गों के उच्चारण के लिए उस उस स्थान के ही बाद के उस-उस स्थान के पहले के भाग को स्पर्श करती है या समीप जाती है। अतः इन तीनों प्रकारों के वर्णों के उच्चारण के लिए → स्व-स्थान-‘करण’, अर्थात् ‘उपकरण’ होता है-

(ञ)
Class 8 Sanskrit Chapter 13 Hindi Translation वर्णोच्चारण-शिक्षा १ Summary 8
(पृष्ठ 151)
शब्दार्था:

  • कण्ठ्याः वर्णाः – कण्ठस्थान में उत्पन्न वर्ण ।
  • ओष्ठ्याः वर्णाः – ओष्ठ – स्थान में उत्पन्न वर्ण ।
  • नासिक्याः वर्णाः – नासिका – स्थान में उत्पन्न वर्ण ।

सरलार्था :- कण्ठ-स्थान में उत्पन्न वर्ण [कण्ठ के पीछे का भाग ]

  • कण्ठ – स्थान
  • कण्ठ – करण (यंत्र)
  • [ओष्ठ के आगे का भाग]

ओष्ठ-स्थान में उत्पन्न वर्ण
[ कण्ठ के बाद का भाग]

  • ओष्ठ – स्थान
  • ओष्ठ – करण (यंत्र)
    [ओष्ठ के नीचे का भाग]

नासिका – स्थान में उत्पन्न वर्ण
[नासिका के मूल के ऊपर का भाग]

  • नासिका – स्थान
  • नासिका – करण (यंत्र का उपकरण)
    [नासिका के मूल के नीचे का भाग]

The post Class 8 Sanskrit Chapter 13 Hindi Translation वर्णोच्चारण-शिक्षा १ Summary appeared first on Learn CBSE.



📚 NCsolve - Your Global Education Partner 🌍

Empowering Students with AI-Driven Learning Solutions

Welcome to NCsolve — your trusted educational platform designed to support students worldwide. Whether you're preparing for Class 10, Class 11, or Class 12, NCsolve offers a wide range of learning resources powered by AI Education.

Our platform is committed to providing detailed solutions, effective study techniques, and reliable content to help you achieve academic success. With our AI-driven tools, you can now access personalized study guides, practice tests, and interactive learning experiences from anywhere in the world.

🔎 Why Choose NCsolve?

At NCsolve, we believe in smart learning. Our platform offers:

  • ✅ AI-powered solutions for faster and accurate learning.
  • ✅ Step-by-step NCERT Solutions for all subjects.
  • ✅ Access to Sample Papers and Previous Year Questions.
  • ✅ Detailed explanations to strengthen your concepts.
  • ✅ Regular updates on exams, syllabus changes, and study tips.
  • ✅ Support for students worldwide with multi-language content.

🌐 Explore Our Websites:

🔹 ncsolve.blogspot.com
🔹 ncsolve-global.blogspot.com
🔹 edu-ai.blogspot.com

📲 Connect With Us:

👍 Facebook: NCsolve
📧 Email: ncsolve@yopmail.com

#NCsolve #EducationForAll #AIeducation #WorldWideLearning #Class10 #Class11 #Class12 #BoardExams #StudySmart #CBSE #ICSE #SamplePapers #NCERTSolutions #ExamTips #SuccessWithNCsolve #GlobalEducation

Post a Comment

0Comments

😇 WHAT'S YOUR DOUBT DEAR ☕️

🌎 YOU'RE BEST 🏆

Post a Comment (0)