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मत बाँधो Class 8 Summary Explanation in Hindi Chapter 7 - #NCSOLVE 📚

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Teachers often provide Class 8 Hindi Notes Malhar Chapter 7 मत बाँधो Summary in Hindi Explanation to simplify complex chapters.

मत बाँधो कविता Class 8 Summary in Hindi

मत बाँधो Class 8 Hindi Summary

मत बाँधो कविता का सारांश – मत बाँधो Class 8 Summary in Hindi

प्रस्तुत कविता महादेवी वर्मा द्वारा रचित है। महादेवी वर्मा रहस्यवाद तथा छायावाद की प्रमुख कवयित्री रही हैं। अपनी कविता ‘मत बाँधो’ में वे सपनों की उड़ान को महत्व देती हुई बता रही हैं कि हमारे सपनों को पंख मिलने चाहिए, अर्थात जीवन को लेकर हम जो सपने देखते हैं उनके विस्तार को हमें रोकना नहीं चाहिए बल्कि स्वच्छंद आसमान में उड़ने देना चाहिए।

कवयित्री का मानना है कि भविष्य को लेकर देखे गए सपनों को गति देने का प्रयास करना चाहिए। वे आरोह अवरोह जैसी मर्जी दिशा में बहना चाहें उन्हें बहने देना चाहिए। हमें उन सपनों को किसी भी प्रकार के बंधन में बाँधना नहीं चाहिए, बल्कि कल्पनाओं की उड़ान को इच्छानुसार स्वतंत्र उड़ने देना चाहिए। ऐसा करने पर मन में सदैव संतोष रहेगा। साथ ही रचनात्मकता के क्षेत्र में भी सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होगा।

मत बाँधो Class 8 Summary Explanation in Hindi Chapter 7 1

कवयित्री कहती हैं जिस प्रकार सुगंध आकाश में उड़ जाती है और फिर कभी लौटकर नहीं आती उसी प्रकार सपने भी जब एक बार चले जाते हैं तो फिर लौटकर नहीं आते। जिस प्रकार बीज यदि धूल में गिर जाए तो कभी अंकुरित नहीं होता। उसी प्रकार सपनों को भी यदि बाधित किया जाए तो वह भी कभी पूरे नहीं होते ।

कवयित्री कहती हैं जिस प्रकार धरा पर अग्नि जलती है परंतु धुआँ आकाश में ऊपर उठता है ठीक उसी प्रकार सपने हमारे दिल में जन्म लेते हैं परंतु यदि उन्हें पूरे करने का प्रयास न किया जाए तो वे भी धुएँ की भाँति नभ में कहीं खो जाते हैं। तब वह केवल हमारी आँखों में ही रह जाते हैं। इसलिए इन्हें स्वतंत्र रूप से ऊपर-नीचे उड़ने देना चाहिए ।

प्रकृति से जोड़ते हुए सपनों का एक काल्पनिक रूप सदैव हमारी आँखों में रहता है जो स्वतंत्र आकाश का चक्कर काटकर वापिस हमारी आँखों में ठहर जाता है। ये वर्षा हमारी मनरूपी धरती पर बरसता है और जीवन को खुशहाल बनाता है अर्थात महादेवी जी कहती हैं कि हमें अपने जीवन के सपने पूरे करने चाहिए इससे वे हमारे जीवन को रोशन बनाते हैं।

मत बाँधो कविता कीव परिचय

मत बाँधो Class 8 Summary Explanation in Hindi Chapter 7 1

हिंदी की सुप्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्होंने छोटी उम्र से ही कविता लिखना आरंभ कर दिया था। बच्चों के लिए उन्होंने ‘बारहमासा’, ‘आज खरीदेंगे हम ज्वाला’, ‘अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी’ जैसी अनेक कविताएँ लिखी हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने भावपूर्ण गद्य मेरा परिवार, अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ तथा पथ के साथी भी रचना की। उनके द्वारा लिखे गद्य के चरित्र पाठकों को याद रह जाने वाले होते हैं। नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्य गीत और दीपशिखा उनके चर्चित कविता-संग्रह हैं। उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न महादेवी वर्मा एक चित्रकार भी थीं।

मत बाँधो कविता हिंदी भावार्थ Pdf Class 8

1. इन सपनों के पंख न काटो
इन सपनों की गति मत बाँधो !

सौरभ उड़ जाता है नभ में
फिर वह लौट कहाँ आता है?
बीज धूलि में गिर जाता जो
वह नभ में कब उड़ पाता है?

अग्नि सदा धरती पर जलती
धूम गगन में मँडराता है !
सपनों में दोनों ही गति हैं उड़ कर आँखों में आता है !

इसका आरोहण मत रोको
इसका अवरोहण मत बाँधो ! (पृष्ठ 91)

शब्दार्थ :
सौरभ – सुगंध ।
नभ – आकाश ।
धूलि – धूल ।
अग्नि – आग।
मँडराना – घूमना ।
आरोहण – ऊपर जाना।
अवरोहण – नीचे आना।

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियों का भावार्थ यह है कि कवयित्री सपनों की उड़ान को महत्वपूर्ण बता रही हैं और वह चाहती हैं कि सपनों को स्वतंत्र आकाश में उड़ने दिया जाए और प्रत्येक संभव प्रयास से पूरा किया जाए।

प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री कहती हैं कि जिस प्रकार सुगंध हवा में उड़कर कहीं खो जाती है; वैसे ही सपने भी अधूरे रहकर कहीं खो जाएँगे। इसलिए इन्हें सीमित न करके विकसित करें। भविष्य हेतु देखे गए सपनों को गति देकर आरोह-अवरोह के आधार पर प्रत्येक दिशा में बहने देना चाहिए। कवयित्री कहती हैं जिस प्रकार बीज धूल में गिरकर अंकुरित नहीं होता ठीक इसी प्रकार यदि सपनों की गति में भी रुकावट आ जाए तो वह कभी पूरे नहीं होते ।

कवयित्री का कहना है कि अग्नि धरा पर जलती है पर उसका धुआँ आकाश में उड़ता है; ठीक उसी प्रकार सपने हमारे दिल में जन्म लेते हैं परंतु यदि उन्हें पूरा करने का प्रयास नहीं किया जाए तो वे भी धुएँ की भाँति कहीं खो जाते हैं।

किसी के सफलता पाने या उन्हें स्वतंत्र रूप से ऊपर-नीचे उड़ने देना चाहिए नहीं तो वे केवल हमारी आँखों में ही रह जाएँगे।

2. मुक्त गगन में विचरण कर यह
तारों में फिर मिल जायेगा,
मेघों से रंग औ’ किरणों से
दीप्ति लिए भू पर आयेगा।

स्वर्ग बनाने का फिर कोई शिल्प
भूमि को सिखलायेगा !
नभ तक जाने से मत रोको
धरती से इसको मत बाँधो !
इन सपनों के पंख न काटो
इन सपनों की गति मत बाँधो ! (पृष्ठ 91)

शब्दार्थ :
मुक्त – आजाद, स्वतंत्र ।
विचरण – घूमना ।
मेघ – बादल ।
दीप्ति – प्रकाश ।
भू – धरती ।
शिल्प – मूर्तिकला |
गति – रफ़्तार, चाल।

भावार्थ – प्रस्तुत कविता स्वतंत्रता और खुलकर जीने का प्रतीक है। इस कविता के माध्यम से कवयित्री प्रत्येक व्यक्ति के स्वतंत्रतापूर्वक अपने सपनों को पूरा करने की प्रेरणा देती है। वह कहती है कि जब हमारी आँखों में सपने आते हैं तो हमें उनका सम्मान करके उन्हें पूर्ण करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए ।

जब ये सपने स्वतंत्र आकाश में विचरण करते हैं तो तारों और बादलों के संग मिलकर फिर धरती पर आते हैं और पूरी धरती को प्रकाशमान बनाते हैं अर्थात जब हम पूर्ण लगन और हिम्मत से अपने सपनों को पूरा करते हैं तथा उनमें रंग भरते हैं तो वे सपने पूर्ण होकर अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणादायक बनते हैं। दूसरों को भी इस बात का अहसास होता है कि यदि वे भी प्रयास करेंगे तो अवश्य ही अपने सपने पूरे कर पाएँगे।

कविता की अंतिम पंक्तियों का भाव यह है कि पक्षी अपने पंखों से आकाश में उड़ान भरते हैं, वैसे ही हमारे सपनों को भी उड़ान भरने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए । यदि इन सपनों के पंख काट देंगे या उनकी गति बाँध देंगे तो वे कभी साकार नहीं हो पाएँगे ।

मत बाँधो Class 8 Summary Explanation in Hindi Chapter 7 3

Class 8 Hindi Chapter 7 Summary मत बाँधो

इन सपनों के पंख न काटो
इन सपनों की गति मत बाँधो !

सौरभ उड़ जाता है नभ में
फिर वह लौट कहाँ आता है?
बीज धूल में गिर जाता जो
वह नभ में कब उड़ पाता है?

अग्नि सदा धरती पर जलती
धूम गगन में मँडराता है !
सपनों में दोनों ही गति हैं
उड़ कर आँखों में आता है!

इसका आरोहण मत रोको
इसका अवरोहण मत बाँधो !

मुक्त गगन में विचरण कर यह
तारों में फिर मिल जायेगा,
मेघों से रंग औ’ किरणों से
दीप्ति लिए भू पर आयेगा।

स्वर्ग बनाने का फिर कोई शिल्प
भूमि को सिखलायेगा !
नभ तक जाने से मत रोको
धरती से इसको मत बाँधो !

इन सपनों के पंख न काटो
इन सपनों की गति मत बाँधो !

– महादेवी वर्मा

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